IAS Success Story: एक मजदूर की बेटी से आईएएस बनने तक का सफर

IAS Success Story: नमस्कार आप सभी पाठकों का हमारे आज के इस अनुच्छेद में स्वागत है. आज हम आपको श्रीधन्या सुरेश की कहानी सुनाने वाले हैं. केरल में रहने वाली पहली आदिवासी लड़की जो आईएएस बनी है. जिसने ना जाने कितनी सारी विपरीत परिस्थितियों का सामना करके इस सफलता को हासिल किया है.

आज हम श्रीधन्या सुरेश के बारे में आपको सभी जानकारियां देने वाले हैं, लोग कहते हैं कि अगर आप किसी भी चीज को पूरी लगन और निष्ठा के साथ पाना चाहो तो उस चीज को आप से कोई दूर नहीं कर सकता. कुछ ऐसी ही लगन और निष्ठा से श्रीधन्या ने भी आईएएस बनने का संकल्प किया था.

Ias Sreedhanya Suresh Success Story

और उनकी यह कड़ी मेहनत रंग भी लाई. और वह अपने सपने को साकार करके आईएएस बन गई. लेकिन लोग तो सिर्फ सफलता को ही देखते हैं. उसके पीछे जो कड़ी मेहनत, बलिदान और जी तोड़ कोशिश होती है, वह कोई नहीं देखता. और ना किसी को पता चलता है.

तो, आज हम अपने इस अनुच्छेद में श्रीधन्या की वह सारी मेहनत और बलिदान की पूरी कहानी आप तक पहुंचाने वाले हैं क्योंकि जितने भी गरीब और मध्यम वर्गीय परिवार के युवा हैं, उन सभी को श्रीधन्या की इस कहानी से काफी प्रेरणा मिलने वाली है.

वैसे सभी बच्चे जो हर वक्त अपने माता-पिता से चीजों के अभाव के बारे में शिकायत करते हैं. वह यह जान पाएंगे कि यदि आप किसी चीज को हासिल करने की मन में ठान लेते हैं तो फिर कोई भी परिस्थिति या किसी भी चीज का अभाव आपको उस चीज को पाने से रोक नहीं सकता.

श्रीधान्या के माता पिता दिहाड़ी मजदूर थे 

श्रीधन्या का पूरा नाम श्रीधान्य सुरेश है. इनका जन्म केरल के वायनाड जिले के एक छोटे से गांव पोजुथाना में हुआ था. श्रीधन्या जिस क्षेत्र से है, वह क्षेत्र सभी मामलों में काफी पीछे है. इनके घर में उनके माता-पिता तथा उनके तीन भाई बहन भी रहते हैं. उनकी आर्थिक स्थिति भी काफी कमजोर थी.

उनके माता-पिता एक दिहाड़ी मजदूर थे. उनके पिता बाजार में सामान बेचने का भी  काम करते थे. वहीं उनकी माता मनरेगा में मजदूरी किया करती थी. इनकी आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण यह सभी सुख सुविधाओं से वंचित थें. क्योंकि इनके माता-पिता को  श्रीधन्या के साथ और तीन भाई बहनों का ध्यान रखना होता था.

सरकारी स्कूल से शिक्षा प्राप्त कर श्रीधन्या बनी आईएस   

आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण श्रीधान्य के माता पिता के पास इतने पैसे नहीं थे कि वे बच्चों को किसी बड़े स्कूल में दाखिला दिलवा पाते लेकिन वे जितने भी समर्थ थें उसी अनुसार अपने सभी बच्चों की पढ़ाई करवाई. पैसे की वजह से किसी की भी पढ़ाई नहीं रुकने दी.

लेकिन श्रीधन्या ने यह साबित कर दिया कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप अंग्रेजी माध्यम से पढ़े हो या फिर हिंदी माध्यम से, किसी बड़े स्कूल से पढ़े हो या फिर किसी साधारण स्कूल से आप में बस कामयाबी हासिल करने का जुनून होना चाहिए. स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने  St. जोसेफ कॉलेज देवनागरी, कलाकित विश्वविद्यालय में दाखिला लिया.

यहां से उन्होंने जूलॉजी में ग्रेजुएशन पूरा किया. फिर उन्होंने अपना पोस्ट ग्रेजुएट कालीकट यूनिवर्सिटी से पूरा किया. अपनी पोस्ट ग्रेजुएट की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होने क्लर्क के रूप मे राज्य के जनजाति विकास के विभाग में काम भी करना शुरू कर दिया था.

क्लर्क का काम करने के साथ-साथ वायनाड के आदिवासी गर्लस हॉस्टल में वार्डन का भी काम किया था. जीवन के इसी पड़ाव पर एक बार उन्हें आईएएस श्री राम सांबा शिवराव से मुलाकात करने का मौका मिला था. और ऐसा लगता है कि उनसे मिलने के बाद ही श्रीधन्या का लक्ष्य और भी ज्यादा साफ हो गया था. और उन्हें समझ आ गया था कि अब उन्हें आगे क्या करना है.

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यूपीएससी में चयन होने के पहले भी श्रीधन्या ने दी थी यूपीएससी की परीक्षा

श्री धन्या का यूपीएससी में चयन 2018 में हुआ था. लेकिन 2018 से पहले भी दो बार 2016 और 2017 में श्रीधन्या ने यूपीएससी की परीक्षा दी थी. और उन्हें दोनों बार असफलता ही हासिल हुई थी. इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी.

और बिना निराश हुए दुबारा प्रयत्न किया. और अपनी सफलता से सबको आश्चर्यचकित कर दिया. इस परीक्षा में उन्होंने 410वां स्थान प्राप्त किया और आईएएस बन गई. अपने माता-पिता भाई बहनों और सभी का सर गर्व से ऊंचा कर दिया. 

श्रीधन्या के पास इंटरव्यू तक के पैसे नहीं थे

श्रीधन्या  की आर्थिक स्थिति बहुत ही खराब थी. उनके परिवार का गुजर-बसर बहुत ही मुश्किल से हो रहा था. ऐसे में जब श्रीधन्या के घर वालों को पता चला कि उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा में सफलता हासिल कर ली है तो शुरुआत में तो सभी लोग काफी खुश हुए.

लेकिन जब उन्हें पता चला कि श्री,धन्या को इंटरव्यू देने के लिए दिल्ली जाना है तो सभी लोग मायूस हो गए क्योंकि उन सबको पता था कि उनके पास इतने पैसे नहीं  हैं कि वे श्रीधन्या को इंटरव्यू के लिए दिल्ली भेज सकें. यूपीएससी की परीक्षा में सफलता हासिल करने के बाद जब उन्हें इंटरव्यू के लिए जाना था.

तब उनके पास इतने भी पैसे नहीं थे कि वह इंटरव्यू के लिए जा सके. जब उनके दोस्तों को ये बात पता चली तो उन सभी लोगों ने मिलकर श्री धन्या के लिए पैसे जमा किए और इंटरव्यू देने के लिए उन्हें दिल्ली भेज. और इस तरह उनके दोस्तों ने उनकी मदद की. और इंटरव्यू में जाने के लिए उन्हें पैसे दिए.

श्रीधन्या के परिवार और उनके दोस्तों को कहीं ना कहीं यह आशा थी कि श्रीधन्या जरूर कुछ बेहतर कर दिखाएगी और उन सभी की आशाओं पर वह खरी उतरी और अपना इंटरव्यू क्लियर कर लिया. जिसके बाद उनके दोस्त और परिवार के सभी सदस्य काफी खुश हैं.

निष्कर्ष-  

हमारे आज के इस अनुच्छेद में हमने आपको श्रीधान्य सुरेश जो केरल की सबसे पहली महिला आदिवासी आईएएस ऑफिसर बनी है,उनके बारे में  बताया कि कैसे एक गरीब वर्गीय परिवार की बेटी होकर कई विपरीत परिस्थितियों से लड़कर और दो बार असफलता हासिल करने के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और दोबारा कोशिश जारी राखी. और सफलता हासिल की. हमें उम्मीद है कि श्रीधन्या की इस संघर्ष की कहानी को पढ़ने के बाद आपको भी काफी प्रेरणा मिली होगी. अत: हमारे अनुछेद को अपना कीमती समय देने के लिए धन्यवाद. आपसे अब मुलाकात होगी अपने अगले अनुच्छेद में तब तक के लिए नमस्कार!

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